जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया तब एक दिन महाराज युधिष्ठिर की सभा में इस बात का जिक्र हो रहा था कि युद्ध में भगवान श्री कृष्ण ने हमारी बहुत मदद की, अगर वो ना होते तो निश्चय ही हम यह युद्ध हार जाते। अतः अब हमे केशव के पास जाकर उनसे राज काज चलाने के गुण सीखने चाहिए।
इस बात को सुनकर महाबली भीम को थोड़ा बुरा लग गया क्योंकि उन्होंने ही सारे कौरवों को मारा था। इसलिए जब महाराज युधिष्ठर अपनी बात पूरी कर लिए तब मौका पाकर भीम ने कहा कि युद्ध में भले ही नंदनंदन ने अहम भूमिका निभाई परन्तु अगर मै ना होता तो पूरे १०० के १०० कौरव भाईयो को मारना बहुत ही दुष्कर कार्य था। अत: युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका मैंने निभाई है।
अपने मित्र यानी भगवान के बारे में ऐसी बात सुनकर अर्जुन से रहा नही गया और क्यों रहा जाए क्योंकि अर्जुन भगवान के अनन्य भक्त भी तो थे। अतः अर्जुन ने कह दिया कि अगर आप के अनुसार केशव का युद्ध में महत्वपूर्ण योगदान नहीं है तो आप का भी नहीं हैं क्योंकि युद्ध में सारे महारथी एवम् वीर योद्धाओं को तो मैंने ही मारा है।अत: युद्ध में मेरे बिना जीत असंभव थी।
इतनी बात सुनकर भीम बिगड़ गए। भीम ने कहा कि हे अनुज युद्ध में महारथियों को मारना कोई बड़ी बात नही है। सेना, हाथी एवं घोड़े भी होते है ; और मैंने इन सब को युद्ध भूमि में धूल चटाई है। तब अर्जुन ने कहा कि मैंने भी तो बहुत सारी सेना को अपने बाणों से छलनी किया है। अत: युद्ध में मैंने कौरवों का विनाश ज्यादा किया है। अब बात धीरे धीरे बहस में बदलती जा रही थी। इसलिए महाराज युधिष्ठिर ने कहा कि आप लोग अगर ऐसे ही लड़ेंगे तो इस राज्य का क्या होगा। आप दोनों के अंदर अहंकार का जन्म हो चुका है। आप दोनों ने युद्ध में बराबर एवम् महत्वूर्ण भूमिका निभाई है।अब आप लड़ाई छोड़ दो और चलो पहले श्री कृष्ण के पास चलते हैं।
महाराज युधिष्ठिर की बात सुनकर दोनों महाबली शांत हो गये एवम् सभी भगवान के पास उनसे राजनीति का ज्ञान लेने हेतु चल पड़े। परन्तु अभी भी भीम और अर्जुन का अभिमान खत्म नहीं हुआ था। जब पांचों भाई मथुरा पहुंचे तब भगवान कृष्ण ने उनका स्वागत किया एवम् उनसे आने का कारण पूछा। हालांकि भगवान तो अन्तर्यामी थे और वो सारी बाते जानते थे अत: वास्तविकता जानने के लिए उन्होंने अर्जुन से कहा कि हे पार्थ आज तुम्हारे मुख पर यह कैसी उदासी एवम् निराशा व्याप्त है...?
इतनी बात सुनकर अर्जुन से रहा नही गया और उन्होंने भगवान से पूछ ही लिया कि हे प्रभु आपके बाद कुरुक्षेत्र के युद्ध में सबसे बड़ा योगदान किसका था ? क्या भैया भीम ने ही महाभारत युद्ध मै हमे जीत दिलाई है या फिर किसी और ने? अब अन्तर्यामी भगवान श्री कृष्ण यह बात पूरी तरह समझ गए कि अर्जुन के पास अब अभिमान हो गया है। बस वो अब भीम की सुनना चाहते थे। अत: उन्होंने भीम की तरफ अपनी दृष्टि जमाई और मुक भाषा में उनका प्रतिउत्तर पाने की चेष्टा की। परन्तु भीम भगवान की सोच से भी आगे निकले, भीम ने कहा कि हे देवकीनंदन, क्या यह बात सत्य नहीं है कि अगर मै ना होता तो दुर्योधन समेत उनके सारे भाईयो का वध कौन करता? पुन: भीम ने आगे कहा कि इस बात को लेकर हम दोनों को संदेह है कि युद्ध में अर्जुन ने वीरता ज्यादा दिखाई या मैंने ; हे जगत के स्वामी आप हमारी इस शंका का निवारण करे।
अब कहने को कुछ बचा नहीं था। अत: भगवान ने कहा कि है भीम आप दोनों के प्रश्नों का जवाब मेरे पास तो नहीं है किन्तु मुझे ये अवश्य पता है कि आप दोनों को अपने प्रश्नों के उत्तर कहा मिलेंगे। हे अर्जुन, आप को उत्तर दिशा की तरफ जाना चाहिए तथा महाबली भीम आपको दक्षिण दिशा की ओर कूच करना चाहिए। आपको आपके प्रश्नों के उत्तर मिल जाएंगे।
अब दोनों पांडुपुत्रो ने बिना किसी विलंब के अपनी यात्रा निर्धारित दिशाओं में आरंभ कर दी। अर्जुन उत्तर की तरफ गए जहां उन्हें हिमालय पर्वत पर हजारों आदमी, घोड़े एवम् हाथियो की लाशे मिली। वहां गांव के गांव लाशों से पट चुके थे। अर्जुन को यह सब देखकर बड़ा ही कौतूहल हुआ। उन्होंने सोचा की यहा तो बहुत बड़ा युद्ध हुआ होगा। संध्या का समय हो चुका था। अतः अर्जुन ने विश्राम के उद्देश्य से पास के गांव में चले गए। वहा उन्होंने जब गांव के आदमियों को अपना परिचय दिया कि मै महान धनुर्धारी अर्जुन हूं तो गांव वालो ने कहा कि कौन अर्जुन? कहा का धनुर्धारी? अर्जुन को बड़ा ही आश्चर्य हुआ कि ये लोग मेरे बारे में नहीं जानते है। खैर गांव वालो ने उन्हें भोजन कराया और फिर लोग आपस में वार्तालाप करने लगे। अर्जुन ने सोचा कि क्यों न यहां के युद्ध के बारे में जानकारी ली जाय। अत: उन्होंने एक गाव वाले से पूछा कि भैया आपके यहां कौन से युद्ध का इतना भीषण नरसंहार हुआ है। तब गाव वालो ने की कहा की भैया पूछो मत हम तो कभी युद्ध के बारे में सोचते तक नहीं है। परन्तु सुदूर दक्षिण में कोई कुरुक्षेत्र का युद्ध हुआ था , जिसमें किसी भीम नाम के योद्धा ने वहा से सैनिकों, हाथियो एवम् घोड़ों को यहां तक फेक दिया था। उसी वजह से यहां इतनी सारे शव एकत्रित हो गए हैं।
अब यह बताने की जरूरत नहीं है कि अर्जुन ने आगे अपने जवाब को जानने की चेष्टा नहीं किए क्योंकि उन्हें उनका उत्तर मिल गया था।अतः अब वह वहीं से हस्तिनापुर लौट आए।
ईधर महाबली भीम को अभी तक कोई जवाब नहीं मिला था अत: वह चलते चलते सागर तट पर पहुंच आए। यह उन्होंने एक अति विशालकाय राक्षस को देखा जो अपना एक पैर समुद्र के इस तरफ एवं दूसरा उस पार रखकर अपने मुंह को सागर के पानी से धो रहा था। कहते है की प्रात: काल अगर कोई आहार मिल जाय तो उसे कोई नहीं छोड़ता है। यही बात भीम के साथ भी हुआ। भीम तो राक्षस को देखकर स्तब्ध खड़े थे किन्तु वह राक्षस मुंह धोने के पश्चात भीम की ओर अट्टहास करते हुए उनकी ओर मुड़ा एवम् उन्हें अपनी भुजाओं में यूं जकड़ लिया जिस प्रकार वानर राज सुग्रीव को कुंभकर्ण ने पकड़ा था। अब भैया भीम के पास उसका आहार बनने के अलावा कोई अतिरिक्त विकल्प नहीं था। राक्षस ने कहा कि हे मानव तुम इतने सुन्दर एवम् बलशाली दिखने वाले कौन हो? मेरे मुंह मै जाने से पूर्व अपना परिचय बता दो। इस पर भीम ने कहा कि हे राक्षस राज शायद तुम्हे यह नहीं पता है की मै वहीं बलशाली, धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों का नाश करने वाला तथा बकासुर एवम् हिडिंब जैसे पापियों को नरक पहुंचाने वाला पांडुपुत्र भीम हूं। अगर तुम हमारे बारे में जानते तो ऐसा दुस्साहस कभी ना करते। अब तुम मुझे धरा पर अविलंब उतार दो नहीं तो मै अभी तुम्हारा वध कर दूंगा। इतनी बात सुनकर राक्षस जोर से हंसने लगा और बोला कि है मानव तुम किस भीम की बात कर रहे हो मै किसी भीम के बारे में नहीं जानता हूं और नाही तुमसे मै भयभित हूं, आज तो मै तुम्हे अपना आहार जरूर बनाऊंगा परन्तु मै पहले तुम्हारी शक्ति की परीक्षा लूंगा । मै तुम्हे भूमि पर उतार रहा हूं तुम अपनी पूरी शक्ति के साथ भागो या मुझे मारकर अपने प्राण बचा लो। भीम ने अपनी एड़ी चोटी का जोर लगाकर उस पर प्रहार किया किन्तु कहां भीम और कहां वो। अत: अब भीम ने भागना शुरु किया पर कितना भागते कुछ ही पल में भीम को राक्षस ने पकड़ लिया। अब भीम ने अपना आखिरी दाव चलाया और बोले कि है राक्षस मुझे छोड़ दो मै धर्मराज युधष्ठिर का भाई हूं। जब राक्षस ने यह सुना तो उसने भीम को नीचे उतार दिया और बड़े प्यार से पूछा कि क्या तुम उन्हीं युधिष्ठिर के भाई हो जिनके पांच भाईयो में एक महान धनुर्धर अर्जुन भी है? भीम ने कहा कि हां भाई मै ही महाराज युधिष्ठर का अनुज एवम् अर्जुन का बड़ा भाई भीम हूं।
इतना सुनकर राक्षस भीम के पांव छूने लगा और बोला कि बड़े भैया अगर आप अर्जुन जी के भाई है तो मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई। मैंने आपको बहुत कष्ट दिए, आप मुझे अपना अनुज समझकर क्षमा कर दीजिए।
अब भीम ने हुंकार भरी और बोले कि ठीक है मैंने तुम्हे क्षमा किया लेकिन मेरे एक प्रश्न का उत्तर दो। तुम अर्जुन से इतना क्यों डरते हो?
राक्षस ने अब को जवाब दिया उससे भीम का अहंकार चुर चूर हो गया। राक्षस ने कहा कि है बड़े भ्राता अर्जुन बहुत ही बड़े एवम् महान धनुर्धर है वो शब्द वेधी जैसे कई सारे ऐसे बाण चलाना जानते हैं कि अगर उन्हें यह मालूम हो गया कि मैंने आप के साथ इतनी बड़ी धृष्टता कि है कि वो हस्तिनापुर से ही बाण चलाकर मेरा वध कर देंगे। अत: इसीलिए मै क्या पूरी राक्षस जाति अर्जुन जी से भय रखती है।
अब भीम को जवाब मिल चुका था। वो अब सीधे हस्तिनापुर लौट आए। अर्जुन तो पहले से ही वापस आ चुके थे। दोनों ने किसी से नहीं पूछा कि आपको आपके प्रश्न का जवाब मिला या फिर नहीं; और यदि मिला तो क्या मिला।
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