एक जैन कथा है। एक भिक्षु जंगल मै से गुजर रहा था। अचानक वह सजग हो जाता है कि एक शेर उसका पिछा कर रहा है। इसलिए वह भागना शुरु कर देता है। लेकीन उसका भागना भी जैन ढंग का है। वह जल्दी में नहीं है, वह पागल नही है। उसका भागना शांत और लयबध्द है। वह उसमें रस ले रहा है।
फिर वह एक ऊंची चट्टान के करीब पोहचता है। शेर से बचने के लिए वह पेड की एक उंची डाली से लटक जाता है। फिर जब वह निचे देखता है, एक सिंह घाटी में खडा हुआ है, और उसकी प्रतिक्षा कर रहा है। फिर कुछ देर बाद शेर वहां पंहुच जाता है। पहाडी की चोटी पर, और वह पेड के पास ही खडा है। भिक्षुक पेड की डाल पर बस लटका हुआ है। नीचे घाटी में गहरे उतार पर सिंह उसकी प्रतिक्षा कर रहा है।
भिक्षुक हंस पडता है। फिर वह उपर देखता है, तो दो चुहे एक सफेद एक काला पेड की डाली को कुतर रहे है। तब तो भिक्षुक बडे जोर से हंस पडता है। वह कहता है, “यह है जिंदगी” दिन और रात सफेद और काले चुहे काट रहे है। और जहां मैं जाता हुं वहा मौत मेरी प्रतिक्षा कर रही है। बस यही तो हे जिंदगी।
यह है जिंदगी। चिंता करने को कुछ है नही। चीजें इसी तरह है। जहां तुम जाते हो मृत्यु प्रतीक्षा कर रही है। और अगर तुम कही नहीं भी जाते हो, तो दिन और रात तुम्हारा जीवन काट रहे है। और इसिलिए भिक्षु जोर जोर से हंस पडता है। फिर वह चारो और देखता है। अब कोई चिंता नही। जब मृत्यु निश्चित है तब चिंता कैसी? केवल अनिश्चितता में चिंता होती है।
अब वह पेड पर लगे फल को खा रहा है। वह उनका मजा ले रहा है। और ऐसा कहा जाता है कि वह उस घडी में संबोधि को उपलब्ध हो गया था। वह बुध्द हो गया क्योंकी मृत्यु के इतना निकट होने पर भी वह कोई जल्दी में नही था। उसने भगवान को धन्यवाद दिया। ऐसा कहा जाता है कि उस घडी में हर चीज खो गयी थी। वह शेर, वह सिंह, वह डाल और वह स्वयं भी।
यह है धैर्य। यह है संपुर्ण शौर्य। जहां तुम हो, उस क्षण का आनंद मनाओ भविष्य की पुछे बिना। केवल वर्तमान क्षण हो, और तुम संतुष्ट होते हो। तब कहीं जाने की आवश्यकता नही है। जहां तुम हो उसी बिन्दु से, उसी क्षण ही तुम सागर में गिर जाओगे। तुम ब्रह्मांड हो जाओगे।
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