परमात्मा को जानने के लिए संसार जरूरी है।

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मैं तुम्हें एक कहानी कहूंगा। एक धनी आदमी अपने देश का सर्वाधिक धनी व्यक्ति अशांत हो गया। बहुत निराश हो गया। उसे लगा कि जीवन अर्थहीन है। उसके पास सब कुछ था जो धन से खरीदा जा सकता था, लेकिन सब कुछ व्यर्थ सिद्ध हुआ। सच्चा अर्थ तो सिर्फ उसमें होता है जो धन से नहीं खरीदा जा सकता। उसके पास सब कुछ था जो वह खरीद सकता था वह दुनिया की हर चीज खरीद सकता था लेकिन अब क्या किया जाए? वह निराशा से, गहन असंतोष से भरा था।
तो एक दिन उसने अपने सभी कीमती आभूषण, सोने के गहने, हीरे जवाहरात इकट्ठे किए और उन्हें एक पोटली में बांधा और उस आदमी की खोज में निकल पड़ा जो उसे कुछ मूल्यवान दे सके, सुख की एक झलक दे सके। वह उस व्यक्ति को अपने जीवन की सारी कमाई भेंट कर देने को तैयार था। वह एक गुरु से दूसरे गुरु के पास गया; उसने दूर दूर की यात्रा की; लेकिन कोई उसे सुख की एक झलक भी नहीं दे सका। और वह अपना सब कुछ, अपना पूरा राज्य देने को राजी था।
फिर वह एक गांव पहुंचा और मुल्ला नसरुद्दीन का पता पूछा। वह उस गांव का फकीर था। किसी गांव वाले ने उससे कहा कि मुल्ला गांव के बाहर झाड के नीचे बैठकर ध्यान कर रहा है। तुम वहीं जाओ; और अगर इस फकीर से तुम्हें शांति की झलक न मिले तो तुम शांति को भूल ही जाना। तब पृथ्वी पर कहीं भी तुम्हें शांति नहीं मिलेगी। अगर यह आदमी उसकी झलक नहीं दे सकता तो उसकी संभावना ही नहीं है।


वह आदमी बहुत उत्सुक हो उठा और तुरंत नसरुद्दीन के पास पहुंच गया, जो झाड के नीचे बैठा था। सूरज डूब रहा था। उस आदमी ने कहा कि यह रही मेरे जीवन भर की कमाई; मैं सब तुम्हें दे दूंगा अगर तुम मुझे सुख की एक झलक दे सको।
मुल्ला नसरुद्दीन ने सुना। सांझ उतर रही थी और अंधेरा घिर रहा था। उसे कोई उत्तर दिए बिना ही मुल्ला ने उस धनी का थैला छीन लिया और उसे लेकर जोर से भागा। स्वभावत:, धनी व्यक्ति भी उसके पीछे पीछे चीखता चिल्लाता हुआ भागा। मुल्ला को गांव की सड़कों का पता था, लेकिन अजनबी होने के कारण उस धनी आदमी को उनका कुछ पता नहीं था। वह मुल्ला को नहीं पकड़ सका। सारे गांव के लोग उस आदमी के पीछे हो लिए। वह आदमी तो पागल हो रहा था, चिल्ला रहा था. मैं लुट गया, मेरी जिंदगी भर की कमाई लुट गई। मैं भिखमंगा हो गया, दरिद्र हो गया। वह धाड़ मारकर रो रहा था।
फिर नसरुद्दीन उसी झाड़ के पास पहुंच गया जहां वह पहले बैठा था। उसने झाड़ के नीचे थैले को रख दिया और खुद झाड़ के पीछे जा छिपा। धनी आदमी भी पहुंचा; वह थैले पर गिर पड़ा और खुशी के मारे रोने लगा। नसरुद्दीन ने झाड़ के पीछे से देखा और कहा : क्या तुम सुखी आदमी हो? क्‍या तुम्‍हें थोड़ी झलक मिली? उस आदमी ने कहा: मैं उतना सुखी हूं जितना धरती पर कोई आदमी हो सकता है।
क्या हुआ?
शिखर होने के लिए घाटी का होना जरूरी है। परमात्मा को जानने के लिए संसार जरूरी है। संसार घाटी भर है। आदमी वही था; थैला वही था। कुछ नयी बात नहीं हुई थी। लेकिन उस आदमी ने कहा कि अब मैं सुखी हूं उतना सुखी जितना संसार का कोई आदमी हो सकता है। और कुछ मिनट पहले यह व्यक्ति दुखी था। कुछ नहीं बदला था आदमी वही था, थैला वही था, झाड वही था कुछ नहीं बदला था; लेकिन वह आदमी अब नाच रहा था। बस विपरीतता घटित हुई थी, वैषम्य घटित हुआ था।
चेतना तादात्म्य बनाती है, क्योंकि तादात्म्य से ही संसार बनता है। और संसार के माध्यम से तुम स्वयं को पुन: उपलब्ध हो सकते हो।
 



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